रविवार, 28 अप्रैल 2013

तकनीक की दुनिया और हिंदी लेखन

तकनीक पर आधारित लेखों का सरस होना इसकी आवश्यक आवश्यकताओं में शुमार नहीं है। यह अपेक्षा की जाती है के विज्ञान तथ्यों की भाषा बोले और यह भाषा अगर बेरहम भी हो तो मान्य होगी। इस परंपरागत सोच में बदलाव के बीज बोये जा रहें हैं और इसका श्रेय आज के सम्मुन्नत माध्यमों को मिलना चाहिए जिसने लेखक और पाठक दोनों को बड़ी तेजी से आपस में जोड़ने का काम किया है। अंग्रेजी भाषा में लिखे गए आज के तकनीकी या समालोचनात्मक लेखों ने एक नयी सरस विधा को जन्म देने का संकेत दिया है। जिसके बड़े सार्थक परिणाम सामने आये हैं। फ्रेंच, स्पेनिश और अन्य पाश्चात्य भाषाएँ बड़ी तेजी से इसका अनुकरण कर रहीं हैं और लोगों का रुझान इस बात का संकेत देता है की विज्ञान और कला का अगर सही मिश्रण किया जाए तो तकनीकी लेखन में अपार संभावनाएं हैं।

विश्वजाल पर हिंदी लेखन की परंपरा का विकास अब शुरू हो रहा है और जरूरत इस बात की है की हम भी इस लोकप्रिय एवं सार्थक लेखन पर गहराई से विचार करें जहाँ विज्ञान और कला क्रियात्मक रूप से एक दूसरे के पूरक बने। तकनीक सम्बन्धी हिंदी लेखन को हाशिये पर रख कर हम न सिर्फ हिंदी भाषा बल्कि उससे प्रभावित होने वाले करोडो लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे।



4G तकनीक का आगमन हमारी ज़िन्दगी पर गहरा प्रभाव डालने वाला है। जीवन का कोई पक्ष इससे अछूता नहीं रहेगा चाहे शिक्षा का माध्यम हो सरकार की नीतियां, चाहे टेलिकॉम सेक्टर हो या सामाजिक ढांचा सब तरफ  इसके  बहुआयामी असर होंगे। आवश्यकता इस बात की है की लोगों के पास पंहुच रही त्वरित सूचनाएँ उनकी भाषा में पंहुचे ताकि सूचनाओं का आदान प्रदान भी त्वरित हो। 

दुनिया में लगभग ६० करोड़ लोग हिंदी जानते समझते हैं जिसमे ५० करोड़ से ज्यादा भारत में है। विकिपीडिया यह कहता है के हिंदी एक विश्व भाषा बनने की तरफ अग्रसर है। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकोंका मानना है के आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। कटु सत्य यह है की जैसे जैसे इन्टरनेट अपने पावं फैला रहा है और जिस रफ़्तार से इन्टरनेट पर हिंदी भाषा पढने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है उस हिसाब से हिंदी भाषा में सृजन और लेखन नहीं हो रहा। तकनीक सम्बन्धी लेखन की हालत तो और खस्ता है।

समय आ गया है जब विश्वजाल पर हिंदी लेखन को गंभीरता से लिया जाए और सृजन को बढ़ावा दिया जाये। हिंदी को नीरस अनुवादकों के चंगुल से निकालना भी एक चुनौती है जो हमारे सामने मुंह बाए खड़ी है। आइये विकिपीडिया के निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करते हुए हिंदी लेखन की परंपरा की नयी शुरुआत का शंखनाद करें जहाँ तकनीक की पेचीदगी को अपनी भाषा में सरलता से आम जन तक पंहुचाया जा सके :


"हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति

हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का भान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि - 

 - संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है
 - वह सबसे अधिक सरल भाषा है
 - वह सबसे अधिक लचीली भाषा है
 - वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं
 - वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है
 - हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।
 - हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्दरचनासामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं      अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि  
 हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।
 - हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।
 - हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।
 - हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मुहताज नहीं रही।"

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